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Friday 10 May 2024

भगवान परशुराम जयंती

 *भगवान परशुरामजी*

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महर्षि भृगु के पुत्र ऋचिक का विवाह राजा गाधि की पुत्री सत्यवती से हुआ था। विवाह के बाद सत्यवती ने अपने ससुर महर्षि भृगु से अपने व अपनी माता के लिए पुत्र की याचना की। तब महर्षि भृगु ने सत्यवती को दो फल दिए और कहा कि ऋतु स्नान के बाद तुम गूलर के वृक्ष का तथा तुम्हारी माता पीपल के वृक्ष का आलिंगन करने के बाद ये फल खा लेना। किंतु सत्यवती व उनकी मां ने भूलवश इस काम में गलती कर दी। यह बात महर्षि भृगु को पता चल गई। तब उन्होंने सत्यवती से कहा कि तूने गलत वृक्ष का आलिंगन किया है। इसलिए तेरा पुत्र ब्राह्मण होने पर भी क्षत्रिय गुणों वाला रहेगा और तेरी माता का पुत्र क्षत्रिय होने पर भी ब्राह्मणों की तरह आचरण करेगा। 


तब सत्यवती ने महर्षि भृगु से प्रार्थना की कि मेरा पुत्र क्षत्रिय गुणों वाला न हो भले ही मेरा पौत्र (पुत्र का पुत्र) ऐसा हो। महर्षि भृगु ने कहा कि ऐसा ही होगा। कुछ समय बाद जमदग्रि मुनि ने सत्यवती के गर्भ से जन्म लिया। इनका आचरण ऋषियों के समान ही था। इनका विवाह रेणुका से हुआ। मुनि जमदग्रि के चार पुत्र हुए। उनमें से परशुराम चौथे थे। इस प्रकार एक भूल के कारण भगवान परशुराम का स्वभाव क्षत्रियों के समान था।


राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका और भृगुवंशीय जमदग्नि के पुत्र विष्णु के अवतार परशुराम शिव के परम भक्त थे। इन्हें शिव से विशेष परशु (कुल्हाड़ी) प्राप्त हुआ था। इनका नाम तो राम था किन्तु शंकर द्वारा प्रदत अमोघ परशु को सदैव धारण किए रहने के कारण ये परशुराम कहलाते थे। विष्णु के दस अवतारों में से छठा अवतार, जो वामन एवं रामचन्द्र के मध्य में हैं गिने जाते हैं। जमदग्नि के पुत्र होने के कारण ये जामदग्न्य भी कहे जाते हैं। इनका जन्म अक्षय तृतीय (वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीय तिथि) को हुआ था। अतः इस दिन व्रत करने व उत्सव मनाने की प्रथा है। परम्परा के अनुसार इन्होंने क्षत्रियों का अनेक बार विनाश किया। क्षत्रियों के अहंकारपूर्ण दमन से विश्व को मुक्ति दिलाने के लिए इनका जन्म हुआ था।


उनकी माता जल का कलश भरने के लिए नदी पर गई। वहां गंधर्व चित्ररथ अप्सराओं के साथ जलक्रीड़ा कर रहा था। उसे देखने में रेणुका इतनी तन्मय हो गई कि जल लाने में विलंब हो गया तथा यज्ञ का समय व्यतीत हो गया। उसकी मानसिक स्थिति समझकर जमदग्नि ने क्रोध के आवेश में बारी-बारी से अपने चारों बेटों को मां की हत्या करने का आदेश दिया। किन्तु परशुराम के अतिरिक्त कोई भी ऐसा करने के लिए तैयार नहीं हुआ। पिता के कहने से परशुराम ने माता का शीश काट डाला। पिता के प्रसन्न होने पर उन्होने परशुराम को वर मांगने को कहा तो उन्होंने चार वरदान मांगे। 1- माता पुनर्जीवित हो जाएं, 2- उन्हें मरने की स्मृति न रहे, 3- भाई चेतना युक्त हो जाएं और 4- मां परमायु हो। जमदग्नि ने उन्हें चारों वरदान दे दिए।


जानापाव पहाड़ी का संक्षिप्त परिचय

     एवं धार्मिक एवं पौराणिक महत्व

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इस स्थल को जानापाव कहने के बारे में जनश्रुति है। परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि ने परशुराम को अपनी माँ का सिर काटने का आदेश दिया था। उन्होंने यह कार्य करके पिता को कहा कि अब मुझे माँ जीवित चाहिए। तब ऋषि ने अपने कमण्डल से जल छींटा तो माँ में वापस जान आ गई थी। इसलिए इसका नाम जानापाव यानी जान वापस आना पड़ा। इन्दौर जिले की महू तहसील से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर विन्ध्याचल पर्वत की श्रृंखला में धार्मिक एवं पौराणिक महत्व का स्थान जानापाव स्थित है। 


वर्षों पूर्व जानापाव पहाड़ी ज्वालामुखी का उद्गम स्थल था। ज्वालामुखी के लावे से ही मालवा क्षेत्रा में काली मिट्टी का फैलाव हुआ था। वर्तमान में यह बिन्दुजल कुण्ड के रूप में विद्यमान है। नदियों का उद्गम स्थलः-जानापाव पहाड़ी की मुख्य विशेषता यह है कि यहाँ से सात नदियों का उद्गम हुआ है। इनमें से तीन नदियाँ चोरल, गम्भीर एवं चम्बल मुख्य हैं। शेष चार सहायक नदियाँ नखेरी, अजनार, कारम और जामली हैं।प्रति वर्ष अक्षय तृतीया को जानापाव में भगवान परशुराम जी का जन्मोत्सव बडे़ पैमाने पर मनाया जाता है।


   || भगवान परशुराम जी की जय हो ||

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Saturday 20 April 2024

ध्यान रखें कि हमेशा अधूरा ज्ञान खतरनाक होता है..

 * *ध्यान रखें कि हमेशा अधूरा ज्ञान खतरनाक होता है*

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अश्वथामा और अर्जुन ने छोड़ दिए थे ब्रह्मास्त्र, इसके बाद 

  अधूरे ज्ञान की वजह से अश्वथामा को मिला शाप-


किसी भी काम में सफलता चाहते हैं तो उस काम से जुड़ा पूरा ज्ञान हमें होना चाहिए, तभी काम में सफलता मिल सकती है। अगर अधूरे ज्ञान के साथ कोई काम करेंगे तो ये हमारे लिए नुकसान दायक हो सकता है। महाभारत के एक प्रसंग से समझ सकते हैं कि हमारे लिए अधूरा ज्ञान कितना खतरनाक हो सकता है... अश्वथामा को था ब्रह्मास्त्र का अधूरा ज्ञान महाभारत युद्ध के बाद का प्रसंग है। दुर्योधन ने मृत्यु से पहले अश्वत्थामा को कौरव सेना का आखिरी सेनापति नियुक्त किया।


 उसने पांडवों के पांच पुत्रों, धृष्टधुम्र, शिखंडी सहित कई योद्धाओं को अकेले ही मार दिया। इसके बाद भी उसका गुस्सा शांत नहीं हुआ। अर्जुन भी उसके वध का प्रण कर घूम रहा था। दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। दोनों के गुरु द्रौणाचार्य थे। सभी शस्त्रों के संधान में दोनों ही कुशल थे। युद्ध भयानक होता जा रहा था। अश्वत्थामा ने अर्जुन पर ब्रह्मास्त्र चला दिया। जवाब में अर्जुन ने भी अश्वत्थामा पर ब्रह्मास्त्र छोड़ा। दोनों अस्त्रों से पूरी धरती और मानव जाति का विनाश हो जाता। ये देखकर वेद व्यास बीच में आए और उन्होंने दोनों ब्रह्मास्त्रों को रोक दिया।


अर्जुन और अश्वत्थामा दोनों को ही उन्होंने बहुत समझाया। दोनों को अपने-अपने अस्त्र वापस लेने को कहा, अर्जुन ने व्यासजी का कहा मानकर तुरंत अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया लेकिन अश्वत्थामा ने नहीं लिया। वेद व्यास ने जब उससे पूछा कि तुमने अपना अस्त्र वापस क्यों नहीं लिया, तो उसने जवाब दिया कि मुझे ब्रह्मास्त्र को वापस बुलाने की विद्या का ज्ञान नहीं है। वेद व्यास बहुत क्रोधित हुए और कहा कि तुम्हें जिस विद्या का पूरा ज्ञान नहीं है उसका उपयोग ही क्यों किया। ये पूरी सृष्टि के लिए खतरा है।  ऐसा कहकर उसे शाप भी दिया। यह प्रसंग बताता है कि विद्या कोई भी हो, हमें उसका संपूर्ण ज्ञान होना चाहिए। अगर हम विद्या हासिल करने में थोड़ी भी चूक करते हैं तो हमें इसके घातक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।


     || जय श्री कृष्ण जी ||


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Wednesday 17 April 2024

नवरात्रि पर्व का नवम दिवस और मां की पूजा अर्चना

 नवरात्रि पर्व का नवम दिवस और मां की पूजा अर्चना 


#लाल क़िताब ज्योतिष वास्तु नाड़ी ज्योतिष शोध संस्थान

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